Monday 14 May 2018

70 WPM


चेयरमेन साहब मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हम लोग देख रहे है कि गरीबी सबके लिए नहीं है कुछ लोग तो देश में इस तरह से पनप रहे है‍ कि उनकी संपत्ति का कोई हिसाब नहीं है बाकील जो पड़े लिखे है जो अनपढ़ है वे सभी काम करने के लिए तैयार है जब उनके पास करने के लिए काम नहीं होगा तो वे समाज के कारे नारों से कब तक खुश होते रहेगे। रोजी रोटी के अभाव में उनमें कुंठा बढेगी और वे पथ भ्रष्‍ट हो सकते है। महोदय इस बात को आप अवश्‍य समझ ले आप इस तरह देश की युवा शक्ति के आतंकबार और उग्रवाद की खोज में चले जाने का भय रहेगा। इससे देश को बहुत बड़ा नुकसान होगा। मैं स्‍पष्‍ट रूप से कहना चाहता हूं कि आप इस संशोधन के समर्थन के बारे में दलगत दृष्टि से मत देख्एि इस देश में इस तरह के बातावरण से ना तो जनता को और ना ही सरकार को लाभ होगा बल्कि पूरे देश के इससे हानि होगी इसलिए मैं चाहता हँ कि जो सविधान संशोधन विधेयक सदन में लाया गया है उसे आप खुले मन से स्‍वीकार करे मैं हद्रय से इसका समर्थन करता हूँ और इसमें यदि आप कोई अन्‍य सुझाव देना चाहे तो इसका स्‍वागत है। सरकार के लिए केवल अपने घोषणा पत्र में लिखी हुई बातो को दोहराने से कोई लाभ नहीं होगा उन बातों पर अमल करने का रास्‍ता क्‍या है इसे भी आप स्‍पष्‍ट करे। ताकि इस देश में उत्‍पन्‍न समस्‍याओं का हल निकालने के लिए विरोधी दल सरकार को अपना दृष्टिकोण बता सके। श्रीमान अभी अभी मेरे दोस्‍त ने जो विधेयक प्रस्‍तुत किया है इसे स्‍वीकार करने से पहले इसका विष्‍लेशण करना अवश्‍य हो गया है क्‍योंकि मेरा निवेदन है कि विधेयक के संबंध में चर्चा आवश्‍यकता से काफी अधिक हो चुकी है मेरी दृष्टि में इस विधेयक का विचार क्षेत्र बहुत सीमित है और हमें केवल यह सुनिश्चित करना है कि इस विधेयक को स्‍वीकार कर लिया जाये तो इससे उस समस्‍या का समाधान हो सकेगा मैं इसके लिए उद्देश्‍यों और कारणों के विस्‍तार की ओर सभी का ध्‍यान आकर्षित करना चाहता हूं मेरे दोस्‍त रोजगार के अधिकार को सुनिश्चित करना चाहते है और इसे बाद विवाद का बनाना चाहते है समस्‍या यह है कि विपक्ष का दृष्टिकोण स्‍पष्‍ट नहीं है।

Saturday 28 April 2018

30 WPM


जहां तक अपीलार्थी के विद्यवान अधिवक्‍ता द्वारा उठाये गये दूसरे बिंदु का प्रश्‍न है, इस संबंध में यह कहना उचित होगा कि जो कपड़ा मृतिका मौसमी पहने हुई थी, उस पर मानव का खून लगा पाया गया। उन कपड़ों को पुलिस ने शील करके अन्‍य वस्‍तुओं के साथ विधि विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा था। शव के विच्‍छेद के समय मृतिका के दो भागों पर अन्‍य प्रकार की स्‍लाईट बनाई गई थी और उन्‍हे विधि विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा गया था। यद्धपि दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 342 के अधीन अभियुक्‍त द्वारा किए गए कथन का मजिस्‍ट्रेट या पीठासीन अधिकारी द्वारा प्रमाणन ना किया जाना एक अनियमितता हो सकती है, यह किसी भी प्रकार से विचारण को स्‍वत: दूषित नहीं करती। अब यह सुस्‍थापित विधि है कि आरोप विरचित करने में कोई लोप भी विचारण को दूषित नहीं करेगा। जब तक कि उसे अभियुक्‍त को उससे कोई नुकसान नहीं पहुंचाता हो। यह भी सुस्‍थापित है कि यदि प्रारंभिक प्रकम पर इस आशय का कोई आक्षेप ना किया गया हो तो वाद में अपील या पुनरीक्षण के प्रकरण पर जब तक आवेदक तथ्‍यों के आधार पर न्‍यायालय का यह समाधान ना कर दे कि उसके साथ अन्‍याय हुआ है, ऐसा कोई लोप कार्यवाही को दूषित करने का प्रभाव नहीं रख सकता है।
      आवेदक के विरूद्ध श्री दुबे ने यह भी दलील दी थी कि अभियुक्‍त ने विचारण समय में न्‍यायालय के समक्ष स्‍वयं के दोषी होने का अभिवाक् करते हुए उक्‍त कथन नहीं किया था, अपितु विद्यवान विचारण न्‍यायालय ने सादे कागज पर उसके हस्‍ताक्षर ले लिए थे। इस प्रकार की दलील दिया जाना अनुज्ञात नहीं किया जा सकता। विधि की यह उपधारणा है कि ऐसे सभी कार्य को जो विधि के अनुसरण में किया जाना अपेक्षित है, विधि द्वारा विहित प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए किए जाते है। जब तक अन्‍यथा की स्थिति साबित ना की जाये, आवेदक द्वारा यह हमेशा उपदर्शित किया जाता है कि अभिलेख पर तत्‍समय ऐसी कोई भी साम्राग्री पेश नहीं की गई थी जिससे किसी के हस्‍ताक्षर का मिलान किया जा सके।

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विचारण न्‍यायालय के अभिलेख में संलग्‍न आरोप पत्र के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि लिपिकीय त्रुटि के कारण आरोप पत्र में अभियुक्‍त पर धारा 25 वी आयुध अधिनियम का आरोप विरचित किया गया है जबकि अभियुक्‍त के आधिपत्‍य से जैसा कि अभियोजन पक्ष कथन से स्‍पष्‍ट है, देशी कट्टा और दो जिंदा कारतूस बरामद किए गए थे, जो अग्‍नायुध आयुध है। अभिप्राय यह है कि अभ्यिुक्‍त पर धारा 25 ए आयुध अधिनियम के अंतर्गत आरोप पत्र विरचित किया जाना चाहिए था। इस बिंदु पर अपील ज्ञापन में कोई आपत्ति नहीं की गई है और साथ ही साथ अभियोजन साक्षीगण का कूट परीक्षण करते हुए बचाव पक्ष को इस बात का पूर्णत: भान रहा है कि उस पर अग्‍नायुध जप्‍ती का आरोप रहा है और उसने इसी आरोप के संदर्भ में अपना बचाव किया है। अत: उक्‍त तकनीकि या लिपीकीय त्रुटि की    उपेक्षा किया जाना ही उचित होगा।
      प्रकरण में प्रस्‍तुत की गई संपूर्ण साक्ष्‍य को दृष्टिगत रख्‍ते हुए अभियोजन अभियुक्‍त युक्तियुक्‍त संदेश से परे धारा 25ए आयुध अधिनियम के अंतर्गत दण्‍डनीय अपराध का आरोप स्‍थापित करने में     पूर्णत: सफल रहा है। विचारण न्‍यायालय के  निष्‍कर्ष उचित  और वैधानिक है और उनमें हस्‍तक्षेप किए जाने की  कोई औचित्‍यता या आवश्‍यकता प्रकट नहीं होती है। अपील ज्ञापन में ली गई आपत्तियां स्‍वीकार किए जाने     योग्‍य नहीं है। बचाव पक्ष को उनके द्वारा प्रस्‍तुत किए गए न्‍याय द्ष्‍टांतो से कोई लाभ नहीं मिलता।फ इस अपराध के आरोप में अभियुक्‍त को दोषसिद्ध कर विचारण मजिस्‍ट्रेट ने कोई त्रुटि नहीं की है। विचारण मजिस्‍ट्रेट द्वारा किया गया दण्‍ड भी समानुपातिक है और अत्‍याधिक नहीं है। अभियुक्‍त को न्‍यूनतम दण्‍ड से  दण्डित किया गया है। दण्‍डाज्ञा भ्‍ज्ञी हस्‍तक्षेप अयोग्‍य है। यह दाण्डिक अपील सारहीन और निरर्थक होने से खारिज किए जाने योग्‍य है। नि:संदेह यह सत्‍य है कि संहिता के अध्‍याय 7 के अंतर्गत आने वाली किसी भी धारा में आतंकवादी क्रियाकलाप या अंतर्राष्‍ट्रीय अपराध या ऐसा अपराध, जिसके अंतर्गत मुद्रा अंतरण के अपराध अतरवर्लित है। शब्‍दों का उपयोग नहीं किया गया है किंतु केवल इतना ही पर्याप्‍त नहीं है कि यह अभिनिर्धारित किया जाए कि भारत के राज्‍य क्षेत्र के भीतर यदि किसी अपराधी द्वारा कोई अन्‍य संज्ञेय अपराध कारित किया गया है तब भी इन उपबंधों का अवलंब लिया जा सकता है। संहिता के अध्‍याय 7 के अंतर्गत आने वाले उपबंधों का ठीक और उचित निर्वचन यह है कि इन उपबंधों का अवलंब केवल तब लिया जा सकता है जब इनका संबंध दो संविदाकारी राज्‍यों से हो।

43 WPM Hindi


उपरोक्‍त संदर्भ में यह स्‍पष्‍ट है कि विक्रय अनुबंध पत्र के पालन हेतु न्‍यायालय में वाद प्रस्‍तुत  नहीं किया गया है, बल्कि एक अवार्ड आदेश के तहत कार्यवाही किए जाने का उल्‍लेख कर यह बताया गया है कि चैक और नकद राशि का भुगतान कर दिया गया, लेकिन चैक नम्‍बर का उललेख नहीं है। कब्‍जानामा व अनुबंध पर्याप्‍त रूप से स्‍टांपित भी नहीं है। इसके अतिरिक्‍त आवेदक की भूमि के संबंध में कोई खसरा पंचशाला आदि नहीं है। यह भी निर्ववादित है कि अन्‍य द्वारा निष्‍पादित विक्रय पत्र के संबंध में सिविल सूट निराकृत हो गया, जिसकी अपील क्रमांक 214/2015 अभी लंबित है। अन्‍य ऐसा कोई दस्‍तावेज प्रस्‍तुत नहीं किया गया है कि उनका बंटवारा होकर अलग-अलग, अमुख-अमुख भाग पर काबिज थे। उल्‍लेखनीय यह भी है कि वर्तमान प्रकरण 77/2009 में धारा 34 के तहत आज ही आवेदन पत्र स्‍वीकार किया गया है। इन परिस्थितियों में आवेदक आरोपी द्वारा प्रस्‍तुत आवेदन पत्र स्‍वीकार किए जाने योग्‍य नहीं है। फलस्‍वरूप आवेदन पत्र धारा 9 मध्‍यस्‍थता एवं सुलह अधिनियम निरस्‍त किया जाता है।
       दिनांक 27.01.2016 को अभियोगी श्रीमति ऋतु साहु ने अपनी सास ज्‍येष्‍ठ,जेठानी, देवर, देवरानी एवं पति उक्‍त अभियुक्‍तगण के विरूद्ध महिला थाना, भोपाल में लिखित शिकायत प्रस्‍तुत की थी। लिखित शिकायत के अनुसार दिनांक 18.06.2012 को अभियुक्‍त विजय कुमार के साथ अभियोगी का विवाह हुआ था और लगभग पांच लाख रूपए अभियोगी के माता पिता ने खर्च किए थे और दहेज आदि अभियुक्‍तगण को दिया था। विवाह के 10-15 दिन बाद ही सभी अभियुक्‍तगण अभियोगी को अपमानित करने लगे और उस पर दबाव बनाने लगे कि वह अपने पिता से 5 लाख रूपए लेकर आए। अभियोगी के साथ दुर्वव्‍यहवार किया जाता था और उसे खाने व कपड़े के लिए तंग किया जाता था। और मारपीट की जाती थी। अभियोगी जब गर्भावस्‍था में आई तब उसकी इच्‍छा के विरूद्ध गर्भपात कराया गया । महिला थाने में लिखित शिकायत मिलने के बाद अभियुक्‍तगण के विरूद्ध अन्‍य अपराध के साथ-साथ धारा 498ए एवं 506 भाग-2 भारतीय दण्‍ड विधान में अपराध पंजीबद्ध किया गया और पुलिस ने विवेचना पूर्ण होनेके बाद न्‍यायालय में अभियोग पत्र प्रस्‍तुत किया। दण्‍ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्‍याय 7 के अंतर्गत आने वाली धारा 105 पूरी तरह से यह स्‍पष्‍ट करती है कि यह धारा रिष्‍टि को रोकने या आतंकबादी क्रिया कलापों और अर्न्‍राष्‍ट्रीय अपराधों का पूर्ण रूप से सफाया करने के आशय से अंत: स्‍थापित की गई है, अन्‍यथ: संहिता में अध्‍याय 7 अधिनियमित करने का कोई कारण नहीं था। इस अध्‍याय में के उपबंधों का धारा 166 में दिए गए उपबंधों पर अनुपूरक प्रभाव है और सामान्‍य अपराधों कें अन्‍वेषण से इन उपबंधों का कोई लेना देना नहीं है।

46 WPM


प्रकरण में अभियुक्‍त के विरूद्ध धारा 106 भारतीय दण्‍ड संहिता के अधीन यह आरोप है कि उसने दिनांक 16 फरवरी 2016 को शाम 8 बजे के पूर्व से मेघा को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त किया तथा उसके साथ मारपीट कर उसे आत्‍महत्‍या करने के लिए दुष्‍प्रेरित किया जिसके परिणाम स्‍वरूप मेघा ने उक्‍त दिनांक को 7 से  8 बजे के लगभग काम के बीच रास्‍ते में रेल के सामने आकर आत्‍महत्‍या कर ली।
      प्रकरण में आरोपी के विरूद्ध भारतीय दण्‍ड विधान की धारा 498, 506 एवं दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 के अंतर्गत अपराध विरचित कर विचारण प्रारंभ किया गया।  प्रकरण में  अभियोजन द्वारा           साक्ष्‍य समाप्‍त घोषित की गई तथा प्रकरण में अभिलेख पर आई हुई साक्ष्‍य के आधार पर आरोपी के विरूद्ध दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अंतर्गत कथन में उसने बताया कि                 वह वेकसूर है तथा उसे झूठा फंसाया गया है। आरोपी की ओर से बचाव साक्ष्‍य भी अभिलेख पर प्रस्‍तत की गई है। प्रकरण में अभिलेख पर आई साक्ष्‍य आपस में सशख्‍त एवं विचारणीय है तथा ऐसी स्थिति में साक्ष्‍य की पुनरावृत्ति के दोष निवारणार्थ उक्‍त विचारणीय प्रश्‍नों का निराकरण किया जा रहा है।
      उक्‍त प्रकरण में इस प्रकार अभिेलख पर जो साक्ष्‍य आई है उसके अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि मामले की फरियादियान ने अपने कथन में स्‍पष्‍ट रूप से बताया है कि आरोपी द्वारा विवाह की दो वर्ष पश्‍चात से दहेज की मांग की जाने लगी। उक्‍त साक्षी की साक्ष्‍स से यह स्‍प्‍ष्‍ट है कि दिनांक 28 जून 2013 को आरोपी द्वारा न केवल दहेज की मांग  की गई, बल्कि फरियादिया के साथ मारपीट भी की गई और जान से मारने की धमकी दी गई। उक्‍त साक्षी के कथनों का अनुसमर्थन अभियोजन साक्षी 02, अभियोजन साक्षी 03 की साक्ष्‍य से भी हो रहा है। भारतीय दण्‍ड सहिता की धारा 292, 293, और साथ में दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 501 या 502 की उपधारा 3 के अधीन दोषसिद्ध पर न्‍यायालय उन सब प्रतियों कें जिसके बारे में दोषसिद्धी हुई है और जो न्‍यायालय की अभिरक्षा में है, सिद्धदोष व्‍यक्ति के कब्‍जे में या सख्‍ती में है। नष्‍ट किए जाने के लिए आदेश दे सकता है। ऐसी स्थिति में कोई भी अभियुक्‍त माननीय न्‍यायालय की आदेश को मान्‍य करेगा और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह कठोर दण्‍ड के कारावास से दण्‍डनीय होगा।
      उक्‍त प्रकरण में धारा 113 के अधीन जारी किए गए प्रत्‍येक समन या वारंट क साथ धारा 111 के अधीन किए गए आदेश की प्रति होगी और उस समन या वारंट की तामील या निष्‍पादन करने वाला अधिकारी वह प्रति उस व्‍यक्ति को परिदस्‍त करेगा जिस पर उसकी तामील की गई है या जो उसके अधिन पकड़ा गया है।
      अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क किया गया है कि उक्‍त मामले में सभी साक्षी हितबद्ध साक्षी है।

42 WPM


विद्यवान विचारण न्‍यायालय द्वारा माननीय सर्वोच्‍य न्‍यायालय की न्‍यायदृष्‍टांत में अपीलार्थी के विरूद्ध न्‍यायदृष्‍टांत का उचित रूप से संदर्भ लेते हुए उभय पक्ष के मध्‍य व्‍यवहार प्रकृति का विवाद होना पाया है। उक्‍त आदेश विधिसम्‍मत्, औचित्‍यपूर्ण तथ्‍यों के अनुरूप पारित किया गया है। जिसमें हस्‍तक्षेप किए जाने का कोई आधार दर्शित नहीं होता है। अत: विद्यवान विचारण न्‍यायालय का आदेश दिनांक 21 अपैल 2015 की पुष्ठि की जाती है तथा पुनरीक्षणकर्ता की ओर से प्रस्‍तुत पुनरीक्षण याचिका प्रमाण के अभाव में निरस्‍त की जाती है।
       अभियुक्‍त के विरूद्ध धारा 7 एवं 13 सहपठित धारा 13 भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम 1988 की अंतर्गत आरोप है कि उसने दिनांक 30 दिसम्‍बर 2013 के पूर्व से नायब तहसीलदार न्‍यायालय में सहायक ग्रेड-3 जो कि लोकसेवक का पद है, पर पदस्‍थ रहते हुए प्रथी वह अन्‍य के नाम से खरीदी गई रसीद भूमि के नामांतरण कराने के एवज में अपने पद्वीय कर्तव्‍य के दौरान वैध पारिश्रमिक भिन्‍न अवैध पारितोषण के रूप में 3000 रूपए की मांग की एवं दिनांक 30 जनवरी 2013 को प्रार्थी एवं अभियोगी से वैध पारिश्रमिक से भिन्‍न अवैध पारितोषण की राशि रूपए 2000 प्राप्‍त ली तथा लोकसेवक के पद पर पदस्‍थ रहते हुए भ्रष्‍ट या अवैध साधनों से अपने पद का दुर्पयोग करते हुए दिनांक 20 जनवरी 2013 को अभियोगी से 2000 रूपए स्‍वयं के लिए वैध पारिश्रमिक से भिन्‍न राशि प्राप्‍त कर आपराधिक अवचार का अपराध कारित किया।
       आवेदन की ओर से यह तर्क किया गया है कि यह उसका प्रथम नियमित जमानत आवेदन पत्र है, इसके अतिरिक्‍त्‍ अन्‍य कोई आवेदन माननीय उच्‍च न्‍यायालय खण्‍डपीठ ग्‍वालियर के समक्ष ना तो लंबित है और ना ही निराकृत किया गया है। वह दिनांक 04 जनवरी 2017 से न्‍यायिक निरोध में है, वह निर्दोष है उसे प्रकरण में मिथ्‍या आलिप्‍त किया गया है। प्रकरण के निराकरण में समय लगने की संभावना है। अभियुक्‍त शिवपुरी जिले का स्‍थाई निवासी है। उसके भागने  एवं फरार होने  की कोइ संभावना नहीं है। अभियुक्‍त अन्‍वेषण में पूण सहायोग करेगा। तथा अभियोजन साक्षियों को प्रभावित भी नहीं करेगा। वह जमानत की शर्तो का पूरी तरह से   पालन करेगा। अभियुक्‍त ने अपने आवेदन के समर्थन में अपने भाई सुनील का शपथपत्र प्रस्‍तुत किया है।     
       किसी प्रकरण में यदि कोई साक्ष्‍य अपीलार्थी की ओर से पेश किया गया है और उस साक्ष्‍य पर  किसी भी       अभियोजन साक्षी के द्वारा कोई निरोध नहीं करता है तो ऐसी   स्थिति में न्‍यायाधीश उस मामले में                                           गंभीरता से विचार विमर्श करेगा और तब अपने अंतिम निर्णय को अभिलिखित करेगा।

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अपीलार्थी की ओर से अपील ज्ञापन में  बताए आधारों पर विचारण न्‍यायालय द्वारा पारित आलोच्‍य निर्णय व आज्ञाप्ति को प्रश्‍नगत किया गया है। अपीलार्थी की ओर से तर्क के दौरान व्‍यक्‍त किया है कि वादी की ओर से लगायत 3 के दस्‍तावेज व मौखिक साक्ष्‍य कब्‍जे के संबंध में पेश की गई थी। जिस पर विचारण न्‍यायालय ने गंभीरता से विचार नहीं किया ना ही  विश्‍वास किया। आलोच्‍य निर्णय का उक्‍त आदेश के आधार पर लिखा गया है, जबकि वादी ने अपनी साक्ष्‍य से अपना वाद पूर्णत: प्रमाणित किया है। अत: विचारण न्‍यायालय द्वारा पारित आलोच्‍य निर्णय तथ्‍य विधि विरूद्ध होने से निरस्‍त किए जाकर अपीलार्थी की अपील स्‍वीकार कर वाद विचार किए जाने का निवेदन किया है।
       आवेदक साक्षी ने अनावेदक की ओर से किए गए प्रतिपरीक्षण मे स्‍वीकार किया है कि उसका पुत्र जन्‍मजात से विकलांग होकर चलने में अस्‍मर्थ है। उसके तथा अनावेदक के खेत पर जाने का एक ही रास्‍ता है। इस बात को भी अस्‍वीकार किया है कि रास्‍ते को लेकर उनके बीच विवाद है। इस साक्षी ने घटना की रिपोर्ट दिनांक 07 मार्च 2012 को की जाना बताया है किंतु अपने पुत्र व अपनी  जन्‍म दिनांक के संबंध में कोई तिथि नहीं बता पाया है। साक्षी का कथन है कि उसने डॉक्‍टर को घटना के बारे में बता दिया था। डॉक्‍टर शरद जैन में घटना की कोई सूचना थाने में नही दी थी। इसके विपरीत अनावेदक ने अपने कथन में बताया है कि प्रश्‍नगत् वाहन से कोई दुर्घटना नहीं हुई थी। आवेदक द्वारा उसके विरूद्ध असत्‍य प्रकरण पेश किया गया है। आवेदक की ओर से किए गए प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्‍वीकार किया है कि उसके विरूद्ध पुलिस द्वारा प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है, किंतु स्‍वत: साक्षी का कहना है कि प्रकरण का फैसला हो गया है और वह दोषमुक्‍त हो गया है।
       तर्क के दौरान अपीलार्थी के विद्यवान अधिभाषक द्वारा माननीय सर्वोच्‍य न्‍यायालय द्वारा अपील में  पारित निर्णय दिनांक 05 जून 2015 की प्रतिलिपी प्रस्‍तुत करते हुए तर्क किया गया है कि अपीलार्थी ने चेक राशि एवं न्‍यायालय द्वारा निर्णय में उल्लिखित ब्‍याज राशि जमा कर दी है। अत: माननीय सर्वोच्‍य न्‍यायालय द्वारा उक्‍त निर्णय अनुसार वह उन्‍मुक्ति या दोषमुक्ति का पात्र है। इस तर्क पर विचार किया जावें तो विचारण न्‍यायालय के अभिलेख अनुसार दिनांक 31 जून 2016 को प्रकरण के लंबित रहते दौरान अभियुक्‍त कथन के प्रकम पर चैक राशि लाख रूपए न्‍यायालय में जमा की है। उस समय न्‍यायालय द्वारा ना जाक ब्‍याज या प्रतिकर की कोई गणना की गई थी और ना ही अभियुक्‍त की ओर से ऐसा कोई आवेदन प्रस्‍तुत किया गया था।

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चेयरमेन साहब मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हम लोग देख रहे है कि गरीबी सबके लिए नहीं है कुछ लोग तो देश में इस तरह से पनप रहे है‍ कि उनकी संपत...